मालूम करो

क्या उगला मोड़ विसाल का है

क्या उगला हुक्म धमाल का है

मालूम करो

मालूम करो वो मंज़िल चौथे कोस पे है

जिस मंज़िल पर इंकार-ए-दरून-ए-ज़ात-ए-अलम

एहसास-ए-बद दूर हो जाएगा

और पारा पारा जज़्बों की यकजाई से

इक़रार अमर हो जाएगा

जब उम्रों के तख़मीनों से

कुछ क़दमों पर

इक भीड़ लगेगी साँसों की

उन साँसों की

जो छन छन कर के गिरती हैं

बेताब समय के सीने पर

उस सीने पर

जिस सीने में कुछ चाँदी है कुछ सोना है

उन नस्लों का

जो हम दोनों के ध्यान में हैं

और दस्त-ए-शिफ़ा की सूरत हैं

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Malum Karo In Hindi By Famous Poet Farrukh Yar. Malum Karo is written by Farrukh Yar. Complete Poem Malum Karo in Hindi by Farrukh Yar. Download free Malum Karo Poem for Youth in PDF. Malum Karo is a Poem on Inspiration for young students. Share Malum Karo with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.