दो तहों वाली सरगोशी
समाअतें फूल चुन रही हैं
कि ख़ाक में लू का इस्तिआरा
हिरास की मंज़िलों से हो कर
हमारे सीनों में मौजज़न हो
हमारी आँखें
हमारे हल्क़े
न जाने किस दिन से मुंतज़िर हैं
कि वो भी देखें कोई सितारा
कोई सितारा
जो नील-गूँ पानियों के अंदर
नशेब को रौशनी से भर दे
समाअतें फूल चुन रही हैं
कि हब्स टूटे
हवा चले और हज़ार रातें
बिछी हुई साअतों को अपना गवाह लाएँ
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