उसे समझा-बुझा के हम तो हारे
उसे समझा-बुझा के हम तो हारे
न आया दिल ये क़ाबू में हमारे
सुन ऐ ग़ाफ़िल जरस क्या कह रहा है
पड़ा रह तू हम अपनी रह सुधारे
कोई आता नहीं हो जब मदद को
सिवा उस के कोई किस को पुकारे
हिफ़ाज़त करते हैं हम शहर-ए-दिल की
कहीं सोते कोई शब-ख़ूँ न मारे
समुंदर क्यूँ हुआ तू इतना खारी
कोई रोया था क्या तेरे किनारे
(8315) Peoples Rate This