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याद रखते किस तरह क़िस्से कहानी लोग थे - फ़ारूक़ शफ़क़ कविता - Darsaal

याद रखते किस तरह क़िस्से कहानी लोग थे

याद रखते किस तरह क़िस्से कहानी लोग थे

वो यहाँ के थे नहीं वो आसमानी लोग थे

सूखे पेड़ों की क़तारें रोकतीं कब तक उन्हें

उड़ गए करते भी क्या बर्ग-ए-ख़िज़ानी लोग थे

ज़िंदगी आँखों पे रख कर हाथ पीछे छुप गई

दरमियाँ रह कर भी सब के आँ-जहानी लोग थे

कल यहीं पर लहलहाती थीं हँसी की खेतियाँ

कल यहीं पर कैसे कैसे ज़ाफ़रानी लोग थे

टूट कर बिखरे हुए हैं क़ुर्बतों के सिलसिले

छुप गए जाने कहाँ जो दरमियानी लोग थे

ख़ुश्क मिट्टी बन गए तो बूंदियाँ नहला गईं

और हमें क्या चाहिए था आग पानी लोग थे

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