जब कोई नौजवान मरता है
आरज़ू का जहान मरता है
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तेरी मर्ज़ी न दे सबात मुझे
संग-परस्तों की बस्ती में शीशा-गरों की ख़ैर नहीं है
मातम-ए-नीम-ए-शब
अजीब रंग सा चेहरों पे बे-कसी का है
जुनूँ-आसार मौसम का पता कोई नहीं देगा
बचपन
अब फ़क़ीरी में कोई बात नहीं
भटक न जाता अगर ज़ात के बयाबाँ में
बहकी हुई रूहों को तसल्ली दे कर
तेज़ाब, आकार ख़ुश्बू का
हिसार-ए-ख़ौफ़-ओ-हिरास में है बुतान-ए-वहम-ओ-गुमाँ की बस्ती