भटक न जाता अगर ज़ात के बयाबाँ में
तो मेरा नक़्श-ए-क़दम मेरा राहबर होता
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नींद क्यूँ नहीं आती
रंग ख़ाके में नया भर दूँगा मैं
तेरी मर्ज़ी न दे सबात मुझे
एहसास
पूरे क़द से मैं खड़ा हूँ सामने आएगा क्या
अब फ़क़ीरी में कोई बात नहीं
सितारे बोती रहीं नींद से तही आँखें
संग-परस्तों की बस्ती में शीशा-गरों की ख़ैर नहीं है
क़द्रों की हदें तोड़ नई तरह निकाल
आप की तस्वीर थी अख़बार में
एक परी आकाश से उतरी
अजीब रंग सा चेहरों पे बे-कसी का है