आप की तस्वीर थी अख़बार में
क्या सबब है आप घर जाते नहीं
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पूरे क़द से मैं खड़ा हूँ सामने आएगा क्या
मशवरा देने की कोशिश तो करो
बचपन
एक नज़्म जंगलों के नाम
वही में हूँ वही ख़ाली मकाँ है
मौत
तेरी मर्ज़ी न दे सबात मुझे
सुनहरी दरवाज़े के बाहर
जब कोई नौजवान मरता है
दर्द की रात गुज़रती है मगर आहिस्ता
तेज़ाब, आकार ख़ुश्बू का