तेरी मर्ज़ी न दे सबात मुझे
तेरी मर्ज़ी न दे सबात मुझे
बे-यक़ीनी से दे नजात मुझे
इन की नज़रें उठीं मिरी जानिब
याद है पहली वारदात मुझे
हर बला से रहेगा तू महफ़ूज़
इस सफ़र में जो रख ले साथ मुझे
रोज़ मिलता हूँ मय-कदे में उसे
ख़ूब पहचानती है रात मुझे
में तुझे जानता हूँ हरजाई
क्यूँ बताता है अपनी ज़ात मुझे
मुझ को देती है डाल डाल हुआ
छाँव देते हैं पात पात मुझे
(964) Peoples Rate This