मशवरा देने की कोशिश तो करो

मशवरा देने की कोशिश तो करो

मेरे हक़ में कोई साज़िश तो करो

जब किसी महफ़िल में मेरा ज़िक्र हो

चुप रहो इतनी नवाज़िश तो करो

मेरा कहना हर्फ़-ए-आख़िर भी नहीं

मेरी मानो आज़माइश तो करो

ख़ुद-सताई शेवा-ए-इबलीस है

नज़्र-ए-हक़ हर्फ़-ए-सताइश तो करो

चार-सू ज़ुल्मत के पहरे-दार हैं

रहमतों की हम पे बारिश तो करो

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