जब भी तुम को सोचा है

जब भी तुम को सोचा है

सारा मंज़र बदला है

जाते जाते ये किस ने

नाम पवन पर लिक्खा है

अँगारों के मौसम में

जिस्मों का सा मेला है

मेरी बस्ती में आ कर

पागल दरिया ठहरा है

ख़ुशियाँ हैं मेहमान मिरी

ग़म मेरा हम-साया है

तुम क्या जानो कश्मीरी

दिल्ली में क्या होता है

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