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गहरी नीली शाम का मंज़र लिखना है - फ़ारूक़ नाज़की कविता - Darsaal

गहरी नीली शाम का मंज़र लिखना है

गहरी नीली शाम का मंज़र लिखना है

तेरी ही ज़ुल्फ़ों का दफ़्तर लिखना है

कई दिनों से बात नहीं की अपनों से

आज ज़रूरी ख़त अपने घर लिखना है

शिद्दत पर है हरे-भरे पत्तों की प्यास

सहरा सहरा ख़ून समुंदर लिखना है

पत्थर पर हम नाम किसी का लिक्खेंगे

आईने पर आज़र आज़र लिखना है

चेहरा रौशन खुले हुए सहरा की धूप

गहरी आँखें गहरा सागर लिखना है

इस से आगे कुछ लिखने से क़ासिर हूँ

इस के आगे तुझ को बढ़ कर लिखना है

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