दर्द की रात गुज़रती है मगर आहिस्ता

दर्द की रात गुज़रती है मगर आहिस्ता

वस्ल की धूप निखरती है मगर आहिस्ता

आसमाँ दूर नहीं अब्र ज़रा नीचे है

रौशनी यूँ भी बिखरती है मगर आहिस्ता

तुम ने माँगी है दुआ ठीक है ख़ामोश रहो

बात पत्थर में उतरती है मगर आहिस्ता

तेरी ज़ुल्फ़ों से उसे कैसे जुदा करता मैं

ज़िंदगी यूँ भी सँवरती है मगर आहिस्ता

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Dard Ki Raat Guzarti Hai Magar Aahista In Hindi By Famous Poet Farooq Nazki. Dard Ki Raat Guzarti Hai Magar Aahista is written by Farooq Nazki. Complete Poem Dard Ki Raat Guzarti Hai Magar Aahista in Hindi by Farooq Nazki. Download free Dard Ki Raat Guzarti Hai Magar Aahista Poem for Youth in PDF. Dard Ki Raat Guzarti Hai Magar Aahista is a Poem on Inspiration for young students. Share Dard Ki Raat Guzarti Hai Magar Aahista with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.