Sad Poetry of Farooq Muztar
नाम | फ़ारूक़ मुज़्तर |
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अंग्रेज़ी नाम | Farooq Muztar |
शहर
सब्ज़ आग़ाज़ से सुर्ख़ अंजाम तक
यूँ हुजरा-ए-ख़याल में बैठा हुआ हूँ मैं
ये गर्द-ए-राह ये माहौल ये धुआँ जैसे
उजले माथे पे नाम लिख रक्खें
सोच भी उस दिन को जब तू ने मुझे सोचा न था
सलीब-ए-मौजा-ए-आब-ओ-हवा पे लिक्खा हूँ
नक़्श आख़िर आप अपना हादिसा हो जाएगा
न पानियों का इज़्तिरार शहर में
मैं ताइर-ए-वजूद या बर्ग-ए-ख़याल था
हर नए मोड़ धूप का सहरा
अपनी आँखों के हिसारों से निकल कर देखना
आँखों में मौज मौज कोई सोचने लगा