तआ'क़ुब

शब-ओ-रोज़

जाने मुझे क्यूँ ये एहसास है

कोई मेरे तआ'क़ुब में बढ़ता चला आ रहा है

मैं ख़ुद ही इन भारी क़दमों की आवाज़ के बोझ

से दब रहा हूँ

कि मैं अपने ही दस्त-ओ-बाज़ू में अब लम्हा लम्हा सिमटने लगा हूँ!

मैं अब ख़ुद ही में ज़र्रा ज़र्रा बिखरने लगा हूँ!

में अब अपनी हमसायगी से भी डरने लगा हूँ!

में शायद! ख़ुद अपनी सदा के तआ'क़ुब में चलने लगा हूँ

कि

तश्कीक और ला-यक़ीनी

के धुँदले मनाज़िर लिए आँख में

आप अपने लहू के दहकते जहन्नम में

जलने लगा हूँ!

मिरे हाफ़िज़े में तआ'क़ुब की कोई भयानक कहानी है

महफ़ूज़ शायद!!

(784) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Taaqub In Hindi By Famous Poet Farooq Muztar. Taaqub is written by Farooq Muztar. Complete Poem Taaqub in Hindi by Farooq Muztar. Download free Taaqub Poem for Youth in PDF. Taaqub is a Poem on Inspiration for young students. Share Taaqub with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.