सहर के उफ़ुक़ से

सहर के उफ़ुक़ से

देर तक बारिश-ए-संग होती रही

और शीशे के सारे मकाँ ढेर हो के रहे

दस्त-ओ-बाज़ू कटे

पाँव मजरूह थे

ज़ेहन में किर्चियाँ खुब गईं

अब के चेहरे पे आँखें नहीं

ज़ख़्म थे

किस तरह जागते

किस लिए जागते

देर तक यूँही सोते रहे

लोग क्या जाने क्या सोच कर

मुतमइन हो गए

लोग ख़ामोश थे

(738) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Sahar Ke Ufuq Se In Hindi By Famous Poet Farooq Muztar. Sahar Ke Ufuq Se is written by Farooq Muztar. Complete Poem Sahar Ke Ufuq Se in Hindi by Farooq Muztar. Download free Sahar Ke Ufuq Se Poem for Youth in PDF. Sahar Ke Ufuq Se is a Poem on Inspiration for young students. Share Sahar Ke Ufuq Se with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.