नजात
आइनों के भरे समुंदर में
इक अना जागता जज़ीरा है
और जज़ीरे में यूँ खड़ा हूँ मैं
पानियों में ब-फैज़-ए-अक्स तमाम
डूबता और उभरता रहता हूँ
टूटता और बिखरता रहता हूँ
आइनों के भरे समुंदर में
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आइनों के भरे समुंदर में
इक अना जागता जज़ीरा है
और जज़ीरे में यूँ खड़ा हूँ मैं
पानियों में ब-फैज़-ए-अक्स तमाम
डूबता और उभरता रहता हूँ
टूटता और बिखरता रहता हूँ
आइनों के भरे समुंदर में
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