अपनी आँखें बंद कर लें
अपने ज़ेहनों के दरीचे बंद कर लें
होंट सी लें
वर्ना
हम सब
ज़र्द पेड़ों से चिपक पत्तों पत्तों की तरह
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Gulzar
Rahat Indori
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
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अंधा सफ़र
मैं ताइर-ए-वजूद या बर्ग-ए-ख़याल था
मगर इन आँखों में किस सुब्ह के हवाले थे
मौसम
कतबा
शहर की आँखों में
न पानियों का इज़्तिरार शहर में
ये गर्द-ए-राह ये माहौल ये धुआँ जैसे
हर नए मोड़ धूप का सहरा
यूँ हुजरा-ए-ख़याल में बैठा हुआ हूँ मैं
आँखों में मौज मौज कोई सोचने लगा
शफ़क़-ए-शब से उभरता हुआ सूरज सोचें