Heart Broken Poetry of Farooq Muztar

Heart Broken Poetry of Farooq Muztar
नामफ़ारूक़ मुज़्तर
अंग्रेज़ी नामFarooq Muztar

तआ'क़ुब

शहर

सब्ज़ आग़ाज़ से सुर्ख़ अंजाम तक

अंधा सफ़र

यूँ हुजरा-ए-ख़याल में बैठा हुआ हूँ मैं

ये गर्द-ए-राह ये माहौल ये धुआँ जैसे

उजले माथे पे नाम लिख रक्खें

सोच भी उस दिन को जब तू ने मुझे सोचा न था

शफ़क़-ए-शब से उभरता हुआ सूरज सोचें

सलीब-ए-मौजा-ए-आब-ओ-हवा पे लिक्खा हूँ

क़ुर्बतें बढ़ गई निगाहों की

नक़्श आख़िर आप अपना हादिसा हो जाएगा

न पानियों का इज़्तिरार शहर में

मैं ताइर-ए-वजूद या बर्ग-ए-ख़याल था

मगर इन आँखों में किस सुब्ह के हवाले थे

हर नए मोड़ धूप का सहरा

अपनी आँखों के हिसारों से निकल कर देखना

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