Ghazals of Farooq Muztar
नाम | फ़ारूक़ मुज़्तर |
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अंग्रेज़ी नाम | Farooq Muztar |
यूँ हुजरा-ए-ख़याल में बैठा हुआ हूँ मैं
ये गर्द-ए-राह ये माहौल ये धुआँ जैसे
उजले माथे पे नाम लिख रक्खें
सोच भी उस दिन को जब तू ने मुझे सोचा न था
शफ़क़-ए-शब से उभरता हुआ सूरज सोचें
सलीब-ए-मौजा-ए-आब-ओ-हवा पे लिक्खा हूँ
क़ुर्बतें बढ़ गई निगाहों की
नक़्श आख़िर आप अपना हादिसा हो जाएगा
न पानियों का इज़्तिरार शहर में
मैं ताइर-ए-वजूद या बर्ग-ए-ख़याल था
मगर इन आँखों में किस सुब्ह के हवाले थे
हर नए मोड़ धूप का सहरा
अपनी आँखों के हिसारों से निकल कर देखना
आँखों में मौज मौज कोई सोचने लगा