बात में कुछ मगर बयान में कुछ
बात में कुछ मगर बयान में कुछ
रंग बदला हर एक आन में कुछ
यूँ ही क़ाएम नहीं है ये दुनिया
लोग अच्छे हैं इस जहान में कुछ
मर्सिया हो गया चराग़ों का
जब भी लिक्खा हवा की शान में कुछ
क़त्ल होने हैं सब के सब किरदार
मोड़ ऐसे हैं दास्तान में कुछ
उस को देखा मिली पलक से पलक
जान सी आ गई है जान में कुछ
सिर्फ़ लुत्फ़-ए-सफ़र की बात नहीं
अब मज़ा भी कहाँ थकान में कुछ
सब समझता है अपने मतलब की
कोई बोले किसी ज़बान में कुछ
क्या भरोसा है उस का ऐ 'फ़ारूक़'
आन में कुछ है और आन में कुछ
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