यक़ीं मुझे भी है वो आएँगे ज़रूर मगर
वफ़ा करेगी कहाँ तक कि ज़िंदगी ही तो है
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(860) Peoples Rate This
मिरी ज़िंदगी का महवर यही सोज़-ओ-साज़-ए-हस्ती
नदीम तारीख़-ए-फ़तह-ए-दानिश बस इतना लिख कर तमाम कर दे
अल्लाह के बंदों की है दुनिया ही निराली
जो रहा यूँ ही सलामत मिरा जज़्ब-ए-वालहाना
ग़म-ए-इश्क़ ही ने काटी ग़म-ए-इश्क़ की मुसीबत
दिल-ए-ईज़ा-तलब ले तेरा कहना कर लिया मैं ने
मिरे नाख़ुदा न घबरा ये नज़र है अपनी अपनी
ख़ुशी से फूलें न अहल-ए-सहरा अभी कहाँ से बहार आई
ब-रोज़-ए-हश्र मिरे साथ दिल-लगी ही तो है
कोहसार का ख़ूगर है न पाबंद-ए-गुलिस्ताँ
किसी की राह में 'फ़ारूक़' बर्बाद-ए-वफ़ा हो कर