Love Poetry of Farooq Bakshi
नाम | फ़ारूक़ बख़्शी |
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अंग्रेज़ी नाम | Farooq Bakshi |
वो चाँद-चेहरा सी एक लड़की
वो बस्ती याद आती है
शिकायत
शहर-ए-दोस्त
कभी आओ
जब हम पहली बार मिले थे
ये सौदा इश्क़ का आसान सा हे
वो न आएगा यहाँ वो नहीं आने वाला
वो ख़ुद अपना दामन बढ़ाने लगे
मशवरा किस ने दिया था कि मसीहाई कर
महकते लफ़्ज़ों में शामिल है रंग-ओ-बू किस की
ख़ुदा करे कि ये मिट्टी बिखर भी जाए अब
जली हैं दर्द की शमएँ मगर अंधेरा है
बिछड़ना मुझ से तो ख़्वाबों में सिलसिला रखना