Hope Poetry of Farooq Bakshi
नाम | फ़ारूक़ बख़्शी |
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अंग्रेज़ी नाम | Farooq Bakshi |
वो चाँद-चेहरा सी एक लड़की
जब हम पहली बार मिले थे
वो न आएगा यहाँ वो नहीं आने वाला
उस के होंटों पे बद-दुआ' भी नहीं
रेज़ा रेज़ा सा भला मुझ में बिखरता क्या हे
महकते लफ़्ज़ों में शामिल है रंग-ओ-बू किस की
कैसे इन सच्चे जज़्बों की अब उस तक तफ़्हीम करूँ
जली हैं दर्द की शमएँ मगर अंधेरा है
जैसी ख़्वाहिश होती हे कब होता हे
इस ज़मीं आसमाँ के थे ही नहीं
बिछड़ना मुझ से तो ख़्वाबों में सिलसिला रखना