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शिकायत - फ़ारूक़ बख़्शी कविता - Darsaal

शिकायत

ये तुम ने क्या लिखा

मैं ने तुम्हें दिल से भुला डाला

तुम्हें तो याद होगा

बिछड़ते वक़्त तुम ने ही कहा था

अगर तुम चाहते हो ये

तुम्हारे और मेरे दरमियाँ

ये रिश्ता उम्र भर यूँही रहे क़ाएम

तो इन लफ़्ज़ों से यूँही दोस्ती रखना

कभी फ़ुर्सत मिले तो आओ और देखो

में अब भी लफ़्ज़ लिखता हूँ

में इन लफ़्ज़ों में जीता और मरता हूँ

में इन लफ़्ज़ों में अपना ग़म

कुछ इस सूरत समोता हूँ

कि मेरा ग़म भी सब को

अपना ग़म मालूम होता है

तुम्हें फ़ुर्सत मिले तो आओ और देखो

मिरी साँसों में बसने वाला इक पल भी

तुम्हारे ज़िक्र से ख़ाली नहीं होता

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