कैसे इन सच्चे जज़्बों की अब उस तक तफ़्हीम करूँ

कैसे इन सच्चे जज़्बों की अब उस तक तफ़्हीम करूँ

रूठने वाला घर आए तो लफ़्ज़ों में तरमीम करूँ

मुझ से बिछड़ कर जाने वाले इतना तो समझाता जा

अपने आप को दो हिस्सों में कैसे मैं तक़्सीम करूँ

अहल-ए-सियासत बाँट रहे हैं जान से प्यारे लोगों को

मैं शाइ'र हूँ सच कहता हूँ क्यूँ उन की ताज़ीम करूँ

वो भी ज़माना-साज़ हुआ है तुम भी ठीक ही कहते हो

मेरी भी मजबूरी समझो किस दिल से तस्लीम करूँ

तुझ से बिछड़ना क़िस्मत में था जीना तो मजबूरी है

सोच रहा हूँ उजड़े घर की फिर से नई ताज़ीम करूँ

कोशिश तो की लाख मगर कुछ बात नहीं बनती 'फ़ारूक़'

सोच रहा हूँ सारा मंज़र लफ़्ज़ों में तज्सीम करूँ

(1063) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kaise In Sachche Jazbon Ki Ab Us Tak Tafhim Karun In Hindi By Famous Poet Farooq Bakshi. Kaise In Sachche Jazbon Ki Ab Us Tak Tafhim Karun is written by Farooq Bakshi. Complete Poem Kaise In Sachche Jazbon Ki Ab Us Tak Tafhim Karun in Hindi by Farooq Bakshi. Download free Kaise In Sachche Jazbon Ki Ab Us Tak Tafhim Karun Poem for Youth in PDF. Kaise In Sachche Jazbon Ki Ab Us Tak Tafhim Karun is a Poem on Inspiration for young students. Share Kaise In Sachche Jazbon Ki Ab Us Tak Tafhim Karun with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.