Ghazals of Farooq Bakshi
नाम | फ़ारूक़ बख़्शी |
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अंग्रेज़ी नाम | Farooq Bakshi |
ये सौदा इश्क़ का आसान सा हे
वो न आएगा यहाँ वो नहीं आने वाला
वो ख़ुद अपना दामन बढ़ाने लगे
उस के होंटों पे बद-दुआ' भी नहीं
तमाम शहर में उस जैसा ख़स्ता-हाल न था
रेज़ा रेज़ा सा भला मुझ में बिखरता क्या हे
मशवरा किस ने दिया था कि मसीहाई कर
महकते लफ़्ज़ों में शामिल है रंग-ओ-बू किस की
ख़ुदा करे कि ये मिट्टी बिखर भी जाए अब
कैसे इन सच्चे जज़्बों की अब उस तक तफ़्हीम करूँ
जली हैं दर्द की शमएँ मगर अंधेरा है
जैसी ख़्वाहिश होती हे कब होता हे
इस ज़मीं आसमाँ के थे ही नहीं
इक पल कहीं रुके थे सफ़र याद आ गया
बिछड़ना मुझ से तो ख़्वाबों में सिलसिला रखना