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ये वक़्त ज़िंदगी की अदाएँ भी ले गया - फ़ारूक़ अंजुम कविता - Darsaal

ये वक़्त ज़िंदगी की अदाएँ भी ले गया

ये वक़्त ज़िंदगी की अदाएँ भी ले गया

क़िस्से कहानियों की सभाएँ भी ले गया

उस ने तमाम शहर को गूँगा बना दिया

मेरे दहन से मेरी सदाएँ भी ले गया

मौसम लगा के ज़ख़्म गया शाख़ शाख़ पर

पेड़ों से फूलों वाली रिदाएँ भी ले गया

सूरज ने डूबते हुए हम को सज़ा ये दी

जिस्मों से रौशनी की क़बाएँ भी ले गया

गुज़रा था अपने शहर से रावन फ़साद का

ज़ालिम मोहब्बतों की कथाएँ भी ले गया

'अंजुम' निराला चोर हमें राह में मिला

जो दिल के साथ हम से दुआएँ भी ले गया

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