शहर की फ़सीलों पर ज़ख़्म जगमगाएँगे

शहर की फ़सीलों पर ज़ख़्म जगमगाएँगे

ये चराग़-ए-मंज़िल हैं रास्ता बताएँगे

पेड़ हम मोहब्बत के दश्त में लगाएँगे

बे-मकाँ परिंदों को धूप से बचाएँगे

ज़हर जब भी उगलोगे दोस्ती के पर्दे में

पत्थरों के लहजे में हम भी गुनगुनाएँगे

जंगलों की झरनों की काग़ज़ी ये तस्वीरें

घर के बंद कमरों में कब तलक सजाएँगे

ख़ून बन के रग रग में दूध माँ का बहता है

क़र्ज़ ये भी वाजिब है कैसे हम चुकाएँगे

थक के लौट जाएँगी आँधियाँ सियासत की

जिन की लौ रहे क़ाएम वो दिए जलाएँगे

ये झुकी झुकी पलकें मत उठाइए साहब

झील जैसी आँखों में लोग डूब जाएँगे

(1050) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Shahar Ki Fasilon Par ZaKHm Jagmagaenge In Hindi By Famous Poet Farooq Anjum. Shahar Ki Fasilon Par ZaKHm Jagmagaenge is written by Farooq Anjum. Complete Poem Shahar Ki Fasilon Par ZaKHm Jagmagaenge in Hindi by Farooq Anjum. Download free Shahar Ki Fasilon Par ZaKHm Jagmagaenge Poem for Youth in PDF. Shahar Ki Fasilon Par ZaKHm Jagmagaenge is a Poem on Inspiration for young students. Share Shahar Ki Fasilon Par ZaKHm Jagmagaenge with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.