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उसे भूलने का सितम कर रहे हैं - फरीहा नक़वी कविता - Darsaal

उसे भूलने का सितम कर रहे हैं

उसे भूलने का सितम कर रहे हैं

हम अपनी अज़िय्यत को कम कर रहे हैं

हमारी निगाहों से सपने चुरा कर

वो किस की निगाहों में ज़म कर रहे हैं

हयात-ए-रवाँ की हर इक ना-रवाई

हम अपने लहू से रक़म कर रहे हैं

भली क्यूँ लगे हम को ख़ुशियों की दस्तक

अभी हम मोहब्बत का ग़म कर रहे हैं

किसे दुख सुनाएँ सभी तो यहाँ पर

शुमार अपने अपने अलम कर रहे हैं

सुख़न को सियासत का ज़ीना दिखा कर

तमाशा ये अहल-ए-क़लम कर रहे हैं

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