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तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है - फरीहा नक़वी कविता - Darsaal

तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है

तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है

मगर खोने की भी हिम्मत नहीं है

बहुत सोचा बहुत सोचा है मैं ने

जुदाई के सिवा सूरत नहीं है

तुम्हें रोका तो जा सकता है लेकिन

मिरे आसाब में क़ुव्वत नहीं है

मिरे अश्को मिरे बे-कार अश्को!!

तुम्हारी अब उसे हाजत नहीं है

अभी तुम घर से बाहर मत निकलना

तुम्हारी होश की हालत नहीं है

दुआ क्या दूँ भला जाते हुए मैं

तुम्हें तकने से ही फ़ुर्सत नहीं है

मोहब्बत कम न होगी याद रखना!!

ये बढ़ती है, कि ये दौलत नहीं है

ज़माने अब तिरे मद्द-ए-मुक़ाबिल

कोई कमज़ोर सी औरत नहीं है

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