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हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं - फरीहा नक़वी कविता - Darsaal

हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं

हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं

इक दूजे को वक़्त नहीं दे पाते हैं

आँखें ब्लैक-एण्ड-वाइट हैं तो फिर इन में क्यूँ

रंग-बिरंगे ख़्वाब कहाँ से आते हैं

ख़्वाबों की मिट्टी से बने दो कूज़ों में

दो दरिया हैं और इकट्ठे बहते हैं

छोड़ो जाओ कौन कहाँ की शहज़ादी

शहज़ादी के हाथ में छाले होते हैं

दर्द को इस से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता

हम बे-कार हुरूफ़ उलटते रहते हैं

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