Sad Poetry of Farigh Bukhari
नाम | फ़ारिग़ बुख़ारी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Farigh Bukhari |
जन्म की तारीख | 1917 |
मौत की तिथि | 1997 |
यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा
याद आएँगे ज़माने को मिसालों के लिए
पुकारा जब मुझे तन्हाई ने तो याद आया
नई मंज़िल का जुनूँ तोहमत-ए-गुमराही है
हम एक फ़िक्र के पैकर हैं इक ख़याल के फूल
अपने दरिया की प्यास
यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा
यादों का अजीब सिलसिला है
याद आएँगे ज़माने को मिसालों के लिए
वो रोज़-ओ-शब भी नहीं हैं वो रंग-ओ-बू भी नहीं
वो रोज़-ओ-शब भी नहीं है वो रंग-ओ-बू भी नहीं
वो रौशनी है कहाँ जिस के बाद साया नहीं
नश्शे में जो है कोहना शराबों से ज़ियादा
मसीह-ए-वक़्त सही हम को उस से क्या लेना
मैं शो'ला-ए-इज़हार हूँ कोताह हूँ क़द तक
मैं कि अब तेरी ही दीवार का इक साया हूँ
क्या अदू क्या दोस्त सब को भा गईं रुस्वाइयाँ
कुछ नहीं गरचे तिरी राहगुज़र से आगे
कितने शिकवे गिले हैं पहले ही
जंगल उगा था हद्द-ए-नज़र तक सदाओं का
इस औज पर न उछालो मुझे हवा कर के
हुए हैं सर्द दिमाग़ों के दहके दहके अलाव
हर एक रास्ते का हम-सफ़र रहा हूँ मैं
दो घड़ी बैठे थे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं की छाँव में
दिल के घाव जब आँखों में आते हैं
देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी
देखा तुझे तो आँखों ने ऐवाँ सजा लिए
चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया
चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया
अपने ही साए में था में शायद छुपा हुआ