पुकारा जब मुझे तन्हाई ने तो याद आया
कि अपने साथ बहुत मुख़्तसर रहा हूँ मैं
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याद आएँगे ज़माने को मिसालों के लिए
कितने शिकवे गिले हैं पहले ही
दो घड़ी बैठे थे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं की छाँव में
जितने थे तेरे महके हुए आँचलों के रंग
इस औज पर न उछालो मुझे हवा कर के
देखा तुझे तो आँखों ने ऐवाँ सजा लिए
दो दरिया भी जब आपस में मिलते हैं
इज़हार-ए-अक़ीदत में कहाँ तक निकल आए
हर एक रास्ते का हम-सफ़र रहा हूँ मैं
नश्शे में जो है कोहना शराबों से ज़ियादा