क्या ज़माना है ये क्या लोग हैं क्या दुनिया है
जैसा चाहे कोई वैसा नहीं रहने देते
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Anwar Masood
Jaun Eliya
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मैं कि अब तेरी ही दीवार का इक साया हूँ
क्या अदू क्या दोस्त सब को भा गईं रुस्वाइयाँ
चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया
याद आएँगे ज़माने को मिसालों के लिए
इज़हार-ए-अक़ीदत में कहाँ तक निकल आए
कितने शिकवे गिले हैं पहले ही
देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी
हम एक फ़िक्र के पैकर हैं इक ख़याल के फूल
यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा
वो रोज़-ओ-शब भी नहीं हैं वो रंग-ओ-बू भी नहीं
मसीह-ए-वक़्त सही हम को उस से क्या लेना
जबीं का चाँद बनूँ आँख का सितारा बनूँ