कितने शिकवे गिले हैं पहले ही
राह में फ़ासले हैं पहले ही
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यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा
ख़तरे का निशान
देखा तुझे तो आँखों ने ऐवाँ सजा लिए
याद आएँगे ज़माने को मिसालों के लिए
तुम्हारे साथ ही उस को भी डूब जाना है
हम एक फ़िक्र के पैकर हैं इक ख़याल के फूल
क्या ज़माना है ये क्या लोग हैं क्या दुनिया है
देख कर उस हसीन पैकर को
अपने दरिया की प्यास
रंग-दर-रंग हिजाबात उठाने होंगे