क्या अदू क्या दोस्त सब को भा गईं रुस्वाइयाँ
क्या अदू क्या दोस्त सब को भा गईं रुस्वाइयाँ
कौन आ कर नापता एहसास की पहनाईयाँ
अब किसी मौसम की बे-रहमी का कोई ग़म नहीं
हम ने आँखों में सजाई हैं तिरी अंगड़ाइयाँ
आप क्या आए बहारों के दरीचे खुल गए
ख़ुशबुओं में बस गईं तरसी हुई तन्हाइयाँ
चाँद बन कर कौन उतरा है क़बा-ए-जिस्म में
जाग उट्ठी हैं ख़याल-ओ-फ़िक्र की गहराइयाँ
दिल पे है छाया हुआ बेदार ख़्वाबों का तिलिस्म
ज़ेहन के आँगन में लहराती हैं कुछ परछाइयाँ
आज 'फ़ारिग़' उजड़े उजड़े से हैं 'ग़ालिब' की तरह
याद थीं हम को भी रंगा-रंग बज़्म-आराईयाँ
(842) Peoples Rate This