दिल के घाव जब आँखों में आते हैं

दिल के घाव जब आँखों में आते हैं

कितने ही ज़ख़्मों के शहर बसाते हैं

कर्ब की हा-हा-कार लिए जिस्मों में हम

जंगल जंगल सहरा सहरा जाते हैं

दो दरिया भी जब आपस में मिलते हैं

दोनों अपनी अपनी प्यास बुझाते हैं

सोचों को लफ़्ज़ों की सज़ा देने वाले

सपनों के सच्चे होने से घबराते हैं

दर्द का ज़िंदा रहना प्यास का मोजज़ा है

दीवाने ही ये बन-बास कमाते हैं

तारीख़ों में गुज़रे माज़ी की सूरत

अहल-ए-जुनूँ के नक़्श-ए-पा मिल जाते हैं

दुख सुख भी करता है सर भी फ़ोड़ता है

दीवारों से फ़ारिग़ के सौ नाते हैं

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