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चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया - फ़ारिग़ बुख़ारी कविता - Darsaal

चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया

चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया

हम ने भी चेहरा फ़रोज़ाँ शीशा-ए-मय से किया

पास-ए-ख़ुद्दारी तो है लेकिन वफ़ा-दुश्मन नहीं

तुम ने हम पर तर्क-ए-उल्फ़त का गुमाँ कैसे किया

हम गुनाहों की शरीअ'त से हुए जब आश्ना

जिस्म ने जो फ़ैसला जैसे दिया वैसे किया

इस लिए अब डूबने के ख़ौफ़ से हैं बे-नियाज़

हम ने आग़ाज़-ए-सफ़र दरियाओं की तह से किया

रौशनी अपनी लुटाई हम ने सूरज की तरह

अंधी रातों में उजाला मशअ'ल-ए-लय से किया

जब शुऊ'र आया तो 'फ़ारिग़' वुसअ'त-ए-फ़न के लिए

इस्तिफ़ादा हम ने दुनिया की हर इक शय से किया

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