मैं शायद तेरे दुख में मर गया हूँ
कि अब सीने में कुछ दुखता नहीं है
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दो झुकी आँखों का पहुँचा जब मिरे दिल को सलाम
जब तक चराग़-ए-शाम-ए-तमन्ना जले चलो
परस्तिश की है मेरी धड़कनों ने
हम से तंहाई के मारे नहीं देखे जाते
ज़िंदगी कट गई मनाते हुए
सौत क्या शय है ख़ामुशी क्या है
ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है
नहीं है अब कोई रस्ता नहीं है
दश्त-ए-वहशत ने फिर पुकारा है