वो खुल कर मुझ से मिलता भी नहीं है

वो खुल कर मुझ से मिलता भी नहीं है

मगर नफ़रत का जज़्बा भी नहीं है

यहाँ क्यूँ बिजलियाँ मंडला रही हैं

यहाँ तो एक तिनका भी नहीं है

बरहना सर मैं सहरा में खड़ा हूँ

कोई बादल का टुकड़ा भी नहीं है

चले आओ मिरे वीरान दिल तक

अभी इतना अंधेरा भी नहीं है

समुंदर पर है क्यूँ हैबत सी तारी

मुसाफ़िर इतना प्यासा भी नहीं है

मसाइल के घने जंगल से यारो

निकल जाने का रस्ता भी नहीं है

अजब माहौल है गुलशन का 'फ़रहत'

हवा का ताज़ा झोंका भी नहीं है

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Wo Khul Kar Mujhse Milta Bhi Nahin Hai In Hindi By Famous Poet Farhat Qadri. Wo Khul Kar Mujhse Milta Bhi Nahin Hai is written by Farhat Qadri. Complete Poem Wo Khul Kar Mujhse Milta Bhi Nahin Hai in Hindi by Farhat Qadri. Download free Wo Khul Kar Mujhse Milta Bhi Nahin Hai Poem for Youth in PDF. Wo Khul Kar Mujhse Milta Bhi Nahin Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Wo Khul Kar Mujhse Milta Bhi Nahin Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.