कोई धड़कन कोई उलझन कोई बंधन माँगे

कोई धड़कन कोई उलझन कोई बंधन माँगे

हर-नफ़स अपनी कहानी में नया-पन माँगे

दश्त-ए-अफ़्कार में हम से नए मौसम का मिज़ाज

बिजलियाँ तिनकों की शो'लों का नशेमन माँगे

रात-भर गलियों में यख़-बस्ता हवाओं की सदा

किसी खिड़की की सुलगती हुई चिलमन माँगे

ज़हर सन्नाटे का कब तक पिए सहरा-ए-सुकूत

रेत का ज़र्रा भी आवाज़ की धड़कन माँगे

काली रातों के जहन्नम में बदन सूख गया

दामन-ए-सुब्ह की ठंडक कोई बिरहन माँगे

हब्स वो है कि नज़ारों का भी दम घुटता है

कोई सोंधी सी महक अब मिरा आँगन माँगे

ज़िंदगी जिन के तसादुम से है ज़ख़्मी 'फ़रहत'

दिल उन्हीं टूटे हुए सपनों का दर्पन माँगे

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