तिरा दीदार हो आँखें किसी भी सम्त देखें
सो हर चेहरे में अब तेरी शबाहत चाहिए है
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मसअला आज मिरे इश्क़ का तू हल कर दे
है वही एक मेरे सिवा और मैं
मिलना है अगर ख़ुद से तो फिर देर न करना
मेरा हर ख़्वाब तो बस ख़्वाब ही जैसा निकला
दिल ऐसा मकाँ है जो अगर टूट गया तो
ढूँडेंगे हर इक चीज़ में जीने की उमंगें
ऐ कातिब-ए-तक़दीर ये तक़दीर में लिख दे
था पहला सफ़र उस की रिफ़ाक़त भी नई थी
हाल में जीने की तदबीर भी हो सकती है
जो तुझे पैकर-ए-सद-नाज़-ओ-अदा कहते हैं
नए मिज़ाज की तश्कील करना चाहते हैं