मिलना है अगर ख़ुद से तो फिर देर न करना
खो जाने का डर होता है ताख़ीर में लिख दे
Jaun Eliya
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दिल ऐसा मकाँ है जो अगर टूट गया तो
ये फुर्क़तों में लम्हा-ए-विसाल कैसे आ गया
न दौलत की तलब थी और न दौलत चाहिए है
है वही एक मेरे सिवा और मैं
ये क्यूँ कहते हो राह-ए-इश्क़ पर चलना है हम को
तिरा दीदार हो आँखें किसी भी सम्त देखें
जो तुझे पैकर-ए-सद-नाज़-ओ-अदा कहते हैं
नए मिज़ाज की तश्कील करना चाहते हैं
मेरा हर ख़्वाब तो बस ख़्वाब ही जैसा निकला
नहीं होती है राह-ए-इश्क़ में आसान मंज़िल
मसअला आज मिरे इश्क़ का तू हल कर दे
अब ज़िंदगी रो रो के गुज़ारेंगे नहीं हम