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नए मिज़ाज की तश्कील करना चाहते हैं - फ़रहत नदीम हुमायूँ कविता - Darsaal

नए मिज़ाज की तश्कील करना चाहते हैं

नए मिज़ाज की तश्कील करना चाहते हैं

हम अपने आप को तब्दील करना चाहते हैं

क़ुबूल तर्क-ए-तअल्लुक़ नहीं है लेकिन हम

तुम्हारे हुक्म की तामील करना चाहते हैं

ग़मों के फ़ील न ढा दें कहीं ये का'बा-ए-दिल

सो हम दुआ-ए-अबाबील करना चाहते हैं

हमारे जलने से मिलती है रौशनी तुम को

तो रौशन अब यही क़िंदील करना चाहते हैं

जब उन की कोई भी ता'बीर पा नहीं सकते

हवा में ख़्वाबों को तहलील करना चाहते हैं

किताब-ए-ज़ीस्त में मुश्किल है बाब-ए-इश्क़ 'नदीम'

हम ऐसे बाब की तकमील करना चाहते हैं

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