न दौलत की तलब थी और न दौलत चाहिए है

न दौलत की तलब थी और न दौलत चाहिए है

मोहब्बत चाहिए थी बस मोहब्बत चाहिए है

सहा जाता नहीं हम से ग़म-ए-हिज्र-ए-मुसलसल

ज़रा सी देर को तेरी रिफ़ाक़त चाहिए है

तिरा दीदार हो आँखें किसी भी सम्त देखें

सो हर चेहरे में अब तेरी शबाहत चाहिए है

किया है तू ने जब तर्क-ए-तअल्लुक़ का इरादा

हमें भी फ़ैसला करने की मोहलत चाहिए है

ये क्यूँ कहते हो राह-ए-इश्क़ पर चलना है हम को

कहो कि ज़िंदगी से अब फ़राग़त चाहिए है

नहीं होती है राह-ए-इश्क़ में आसान मंज़िल

सफ़र में भी तो सदियों की मसाफ़त चाहिए है

ग़म-ए-जानाँ के भी कुछ देर तो हम नाज़ उठा लें

ग़म-ए-दौराँ से थोड़े दिन की रुख़्सत चाहिए है

हर इक अपनी ज़रूरत के तहत हम से है मिलता

हमें भी अब कोई हस्ब-ए-ज़रूरत चाहिए है

है जब से मुनअकिस चेहरा बदलने का वो मंज़र

हमारी आइना-आँखों को हैरत चाहिए है

जो निकलें आलम-ए-वहशत से फिर कुछ और सोचें

ख़िरद से राब्ते रखने को फ़ुर्सत चाहिए है

(845) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Na Daulat Ki Talab Thi Aur Na Daulat Chahiye Hai In Hindi By Famous Poet Farhat Nadeem Humayun. Na Daulat Ki Talab Thi Aur Na Daulat Chahiye Hai is written by Farhat Nadeem Humayun. Complete Poem Na Daulat Ki Talab Thi Aur Na Daulat Chahiye Hai in Hindi by Farhat Nadeem Humayun. Download free Na Daulat Ki Talab Thi Aur Na Daulat Chahiye Hai Poem for Youth in PDF. Na Daulat Ki Talab Thi Aur Na Daulat Chahiye Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Na Daulat Ki Talab Thi Aur Na Daulat Chahiye Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.