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जो तुझे पैकर-ए-सद-नाज़-ओ-अदा कहते हैं - फ़रहत नदीम हुमायूँ कविता - Darsaal

जो तुझे पैकर-ए-सद-नाज़-ओ-अदा कहते हैं

जो तुझे पैकर-ए-सद-नाज़-ओ-अदा कहते हैं

क़द्र-दाँ हुस्न के ये बात बजा कहते हैं

उस के चेहरे की ज़िया से है चमक सूरज की

उस की बिखरी हुई ज़ुल्फ़ों को घटा कहते हैं

वो जो आँखों से पिलाए तो चलो पी लेंगे

वैसे हम पीने पिलाने को बुरा कहते हैं

सुर्ख़ हाथों की हक़ीक़त तो हमी जानते हैं

जो नहीं जानते वो रंग-ए-हिना कहते हैं

बात अच्छी ही वो करते हैं हमारे हक़ में

जो हमारे लिए कहते हैं बजा कहते हैं

सख़्त पथरीली ज़मीं पर भी खिलाते हैं गुलाब

शेर हम कहते हैं और सब से सिवा कहते हैं

ये रिवायत है ज़माने की नई बात नहीं

होती आई है कि अच्छों को बुरा कहते हैं

आज गहवारे में बैठे हैं सभी अहल-ए-अदब

इस फ़ज़ा ही को मोहब्बत की फ़ज़ा कहते हैं

हम ने की मश्क़-ए-सुख़न मिस्रा-ए-'ग़ालिब' पे 'नदीम'

लोग इस बारे में अब देखिए क्या कहते हैं

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