सूरज के गोले को
मुट्ठी में भेंच कर
वा'दा करता हूँ
जब तक
पूरे का पूरा अंगार
तुम्हारे चेहरे में नहीं बदलता
तब तक दुनिया में
शाम ही होगी
और न मेरी
हथेली के घाव ही भरेंगे
Parveen Shakir
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तू फ़राहम न हो मुझ को ये है मर्ज़ी तेरी
नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे
जिस को जैसा भी है दरकार उसे वैसा मिल जाए
मोहब्बत का सिला-कार-ए-मोहब्बत से नहीं मिलता
लोग यूँ जाते नज़र आते हैं मक़्तल की तरफ़
अब दिल की तरफ़ दर्द की यलग़ार बहुत है
उस तरफ़
दिन ने इतना जो मरीज़ाना बना रक्खा है
तमाम शहर की आँखों में रेज़ा रेज़ा हूँ
साँप
हर इक जानिब उन आँखों का इशारा जा रहा है
ये बाग़ ज़िंदा रहे ये बहार ज़िंदा रहे