तहरीर की फ़ुर्सत
डाकिया सारे जहाँ की ख़बरें
ले कर आता है मगर मेरे लिए
कितनी आवाज़ें मिरे साथ चला करती हैं
कभी माँ बाप के रोने की सदा
कभी अहबाब के फटते हुए जूतों की दुखन
कभी दुनिया के चटख़ते हुए आज़ा की पुकार
सुब्ह-ता-शाम वही एक शब का आहंग
दर ओ दीवार पे उड़ती हुई राहों का ग़ुबार
राख-दानी में वही सैकड़ों सोचों का धुआँ
चाय की प्यालियाँ फेंके हुए लम्हात को लिपटाए हुए
शेल्फ़ में दुबके हुए ज़ेहन के ना-पोख़्ता-नुक़ूश
मेज़ पर निस्फ़ ख़तों का अम्बार
कौन जाने उन्हें तहरीर की फ़ुर्सत कब हो?
(881) Peoples Rate This