मामूल
मैं भी बादशाह की हुकूमत का
मुनकिर हूँ
लेकिन जीने की आरज़ू में
रोज़ उस की चौखट पर
सूरज सा उभरता हूँ
शाम सा डूबता हूँ
घर में
एलान-ए-बग़ावत के तौर पर
बीवी बच्चों को मारता हूँ
रात रात जागता हूँ
(678) Peoples Rate This
मैं भी बादशाह की हुकूमत का
मुनकिर हूँ
लेकिन जीने की आरज़ू में
रोज़ उस की चौखट पर
सूरज सा उभरता हूँ
शाम सा डूबता हूँ
घर में
एलान-ए-बग़ावत के तौर पर
बीवी बच्चों को मारता हूँ
रात रात जागता हूँ
(678) Peoples Rate This