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उस को है इश्क़ बताना भी नहीं चाहता है - फ़रहत एहसास कविता - Darsaal

उस को है इश्क़ बताना भी नहीं चाहता है

उस को है इश्क़ बताना भी नहीं चाहता है

और ये बात छुपाना भी नहीं चाहता है

सोचता रहता है दिन-भर कि मिरी रात में आए

अपने दिन को ये जताना भी नहीं चाहता है

शाइ'री को मिरा इज़हार समझता है मगर

पर्दा-ए-शे'र उठाना भी नहीं चाहता है

साए को जुस्तुजू-ए-जिस्म बहुत है फिर भी

पहलू-ए-जिस्म में आना भी नहीं चाहता है

ऐसा लगता है कि वो पा भी चुका है मुझ को

जो ब-ज़ाहिर मुझे पाना भी नहीं चाहता है

फ़रहत-एहसास को है सारी हक़ीक़त मा'लूम

महफ़िल-ए-वहम से जाना भी नहीं चाहता है

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